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सपना / विमलेश त्रिपाठी

1 byte added, 05:58, 11 नवम्बर 2011
और मेरे सपने में बैलों के गले की घंटियाँ
घुंघरू की तान की तरह बज रही हैं
 
समूची धरती सर से पाँव तक
हरियाली पहने मेरे तकिये के पास खड़ी है
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