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२८ अगस्त ’७१ / रमेश रंजक
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याद कर के सो लिया
ब्द
शब्द
जो उगले गए थे
वे पुराने भरे मन के थे
आँच-सी सुलगा गए जो बदन में
अनिल जनविजय
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