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२८ अगस्त ’७१ / रमेश रंजक

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आज बस इतना किया
दोस्तानी दुश्मनी को
याद कर के सो लिया

शब्द जो उगले गए थे
वे पुराने भरे मन के थे
आँच-सी सुलगा गए जो बदन में
                    ठंडी जलन के थे
बेवकूफ़ी यह हुई मेरी
कि उनका हो लिया
चलो अच्छा ही हुआ जो सो लिया

बात आई-गई करते हैं कभी तो,
हर समय गम्भीर रहने से
एक धागा टूट जाता है अचानक
मुस्करा कर कुछ न सहने से
और फिर
ख़ामोशियों के बीच थोड़ा हँस दिया
                   आज बस इतना किया

(डायरी से)