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उतरते हुए / रमेश रंजक
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07:57, 26 दिसम्बर 2011
जेबों में सरकारी झिड़कियाँ लिए
घूमते रहे
महँगी पोशाकों के बग़ीचे में
आहि्स्ते
आहिस्ते
हम टूटी टहनी-से झूमते रहे
कितनी कमज़ोर हीन भावना लिए
अनिल जनविजय
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