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उतरते हुए / रमेश रंजक

3 bytes removed, 07:57, 26 दिसम्बर 2011
जेबों में सरकारी झिड़कियाँ लिए
घूमते रहे
महँगी पोशाकों के बग़ीचे में आहि्स्तेआहिस्ते
हम टूटी टहनी-से झूमते रहे
कितनी कमज़ोर हीन भावना लिए
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