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झीना आलोक / रमेश रंजक
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21:07, 7 जनवरी 2012
भोर की किरन
फुनगी पर शीशफूल-सी
खिसक गई
पीन वक्ष से
विरल यामिनी दुकूल-सी ।
बिन बानी बोलने लगे
मंदिर के
पाँव पर गिरी
पंकिल छाया बबूल-सी ।
</poem>
अनिल जनविजय
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