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अजगरी संत्रास / रमेश रंजक
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21:39, 7 जनवरी 2012
प्रश्-सूचक चिन्ह
सारी रात
टूटता अपनत्व कुंठित
व्योम से विच्छिन्न
उल्कापात
थक गई है नब्ज जब संवेदना की
क्या करे कमज़ोर संजीवन
निवेदन
ओढ़ धूमिल धूप पीता अनमनापन।
</poem>
अनिल जनविजय
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