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<poem>
लहर-लहर महर तेरी, मधुर-मधुर चलत चाल,
सुन्दर सुशोभित, बहत आठों याम है।
भक्तन के हेत मात, अवतरी अवतार तेरो
स्नान के करें ते मात, पावत सुख धाम है।
चारों फल प्राप्त होय, पूर्ण सब काम है।
कहता शिवदीन राम, पतितन को पावन करत,
क्लेश दु;ख हरत मात, नर्मदे प्रणाम है।
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