लहर-लहर महर तेरी, मधुर-मधुर चलत चाल,
सुन्दर सुशोभित, बहत आठों याम है।
भक्तन के हेत मात, अवतरी अवतार तेरो
स्नान के करें ते मात, पावत सुख धाम है।
शान्ति सुहावे, दर्शन से लुभावे मन,
चारों फल प्राप्त होय, पूर्ण सब काम है।
कहता शिवदीन राम, पतितन को पावन करत,
क्लेश दु;ख हरत मात, नर्मदे प्रणाम है।
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तेरे में स्नान करे, नित्य प्रति मानव जो,
आनन्द ही आनन्द हो, सुमार्ग बतावनी।
जय-जय जय शक्ति, हमको सत्य भक्ति दे,
कहता शिवदीन, नाम तेरो पतित पावनी।
यश और शोभा तेरी, कवि को बखान करे,
मंगलमय मात, अंक ज्ञान का जचावनी।
बिगडी सब सुधार दे, हमको भव तार दे,
संताप से उबार दे, नर्मदा सुहावनी।
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चलत तरंगिंनी लहर-लहर लहरावे,
शब्द करत बहु भांति श्रवण सुनि आनन्द आवे।
शोभा धारे देत बहुत सुन्दर सुख राशि,
स्नान ध्यान से मात काट दे यम की फांसी।
कल्याण कारिणी नर्मदे नाम लिये विपदा टरत,
शिवदीन राम विनय करे भव दु;ख भव बाधा हरत।