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अकेला तू तभी / वीरेन डंगवाल
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18:25, 2 फ़रवरी 2012
|संग्रह=
}}
<poem>
तू तभी अकेला है जो बात न ये समझे<br>
हैं लोग करोडों इसी देश में तुझ जैसे<br><br>
तू यही सोचना शुरू करे तो बात बने<br>
पीडा की कठिन अर्गला को तोडें कैसे!
</poem>
Dr. ashok shukla
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