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अब क्या छुपा सकेंगी उरयानिआँ हविस की / सीमाब अकबराबादी
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02:59, 20 फ़रवरी 2012
काँधों से पिंडलियों तक लटकी हुई क़बायें॥
वक़्ते-
विदाये
विदा-ए
-गुलशन नज़दीक आ रहा है।
अब आशियाँ उजाड़ें या आशियाँ बनायें॥
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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