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बक़द्र-ए-शौक़ इक़रार-ए-वफ़ा क्या / सीमाब अकबराबादी
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03:06, 20 फ़रवरी 2012
हमारे शौक़ की है इंतहा क्या|
मुहब्बत का यही सब
शगूल
शगल
ठहरा,
तो फिर आह-ए-रसा क्या ना-रसा क्या|
यहाँ दिल ही नहीं दिल से दुआ क्या|
दिल-ए-आफ़त-ज़दा का मुद्द'
अ
आ
क्या,
शिकस्ता-साज़ क्या उस की सज़ा क्या|
द्विजेन्द्र द्विज
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