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अपने दिल में उतर कर देख ज़रा
दर बदर ढूँढ़ता कहाँ है ख़ुदा
 
मुतरिबा मुझको ग़म का गीत सुना
मेरे आँगन में भी हो नग़मासरा
 
बंद आँखें मिरी रहीं लेकिन
मरते दम तक तुझी को देखा किया
 
दायरे ज़िन्दगी ने लाख बनाए
हद से बाहर क़दम निकल ही गया
 
टूटना ही था शीशा ए दिल को
अजनबी बन के देखा आइना
 
थी जहाँ रास्तों को मेरी तलाश
मैं वहाँ ख़ुद ही अपनी मंज़िल था
 
ऐ रवि जाने क्यूँ किसी के बग़ैर
ना मुकम्मल रहा सफ़र मेरा
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