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कन्हैया हालरु रे / सूरदास

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झूलै सखी झुलावहीं , सूरदास बलि जाइ, बलि हालरु रे ॥<br><br>
भावार्थ :--(माता गा रही हैं-)` कन्हैया, झूलो! बढ़ई बहुत सजाकर पलना गढ़ ले आया और उसे पृथ्वीपर पृथ्वी पर चलाकर दिखा दिया, लाल! मैं तुझपर तुझ पर न्यौछावर हूँ, तू (उस पलनेमेंपलने में) झूल! बढ़ई एक लाख (मुद्राएँ) माँगता था, व्रजराजने व्रजराज ने उसे दो लाख दिये । लाल! तुझपर तुझ पर मैं बलि जाऊँ, तू (उस पलनेमेंपलने में) झूल! पलना रत्नजड़ा रत्न जड़ा है और उसमें रेशमकी रेशम की डोरी लगी है, लाल! मैं तेरी बलैया लूँ, तू (उसमें) झूल! मेरा लाल कभी पलनेमें पलने में झूलता है, कभीव्रजराजकी गोदमेंकभी व्रजराज की गोद में, मैं तुझपर तुझ पर बलि जाऊँ, तू झूल! सखियाँ झूलेको झूले को झुला रही हैं, सूरदास इसपर इस पर न्योछावर है! बलिहारी नन्दलाल, झूलो ।'