1,183 bytes added,
14:42, 27 फ़रवरी 2012 {{kkGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
|संग्रह=
}}
{{KKcatGhazal}}
<poem>
हँसी आती नहीं है और रो सकते नहीं हैं
बहुत अफ़सोस है हमको कि हम बच्चे नहीं हैं
बिठाकर पीठ पर बच्चे को खुद बहला दिया कर
खिलौने आजकल बाज़ार में सस्ते नहीं हैं
ग़लत हो या सही, दौलत कमानी ही पड़ेगी
हमारे सामने क्या दूसरे रस्ते नहीं हैं ?
कभी इंसानियत की शर्त होती थी यही शय
मगर अब दूर तक ईमान के चर्चे नहीं हैं
दिखाना पड़ गया औलाद को क़ानून का डर
बुज़ुर्गों के लिए हालात ये अच्छे नहीं हैं
</poem>