रोशनी की किरण देख पाये नहीं ,
जिन्दगी भर दिये हम जलाते रहे।
पंख लेकर कटे, उड़ न पाये कभी
बाजुओं केा को उमर भर हिलाते रहे,पर घटी कामनाएं न तिल भर कभी दांव पर दांव हम आजमाते रहे
उठ चले , फिर गिरे, फिर खडे हो गये,
होंठ पर चैन-बंशी सजाते रहे।
भीतियों ने बसेरे लिये पा्रण प्राण मेंपंव पाँव बढते हुये डगमगाते रहे,
मन बिकल हो बिचरता रहा शून्य में
भावना के सुमन कसमसाते रहे,
रात होेती होती रही भोर होता रहा,
ओस के बिन्दु भी झिलमिलाते रहे।
देख जलते रहे दूसरों को सदा
कर्म पर हम स्वयं के लजाते रहे,
लिप्त होते रहे स्वार्थ के भाव से
हर घडी द्वेष में हम नहाते रहे,
हो न पायीं सफल साधनाऐं कभी,
घंटियां उम्र भर हम बजाते रहे।
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