सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ, चरननि की बलि जैया ॥<br><br>
भावार्थ :-- मोहन अब `मैया' `मैया' कहने लगे हैं । वे व्रजराज श्रीनन्दजीको श्रीनन्द जी को `बाबा'`बाबा' कहते हैं और बलरामजीको बलराम जी को `भैया' कहते हैं । यशोदाजी यशोदा जी ऊँची अटारीपर चढ़करश्यामका अटारी पर चढ़कर श्याम का नाम ले-लेकर (पुकारकरपुकार कर) कहती हैं `कन्हैया! मेरे लाल! दूर खेलने मत जाओ!किसीकी किसी की गाय मार देगी ।' गोपियाँ और गोप आनन्द-कौतुक मना रहे हैं, घर-घर बधाई बज रही है । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं, `प्रभो! आपका दर्शन पाने के लिए मैं आपके चरणोंपर चरणों पर ही न्यौछावर हूँ ।'