भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहन लागे मोहन मैया-मैया / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग देवगंधार

कहन लागे मोहन मैया-मैया ॥
नंद महर सौं बाबा-बाबा, अरु हलधर सौं भैया ॥
ऊँचे चड़ी-चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया ।
दूरि खेलन जनि जाहु लला रे, मारैगी काहु की गैया ॥
गोपी-व्वाल करत कौतूहल, घर-घर बजति बधैया ।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ, चरननि की बलि जैया ॥

भावार्थ :-- मोहन अब `मैया' `मैया' कहने लगे हैं । वे व्रजराज श्रीनन्द जी को `बाबा'`बाबा' कहते हैं और बलराम जी को `भैया' कहते हैं । यशोदा जी ऊँची अटारी पर चढ़कर श्याम का नाम ले-लेकर (पुकार कर) कहती हैं `कन्हैया! मेरे लाल! दूर खेलने मत जाओ!किसी की गाय मार देगी ।' गोपियाँ और गोप आनन्द-कौतुक मना रहे हैं, घर-घर बधाई बज रही है । सूरदास जी कहते हैं, `प्रभो! आपका दर्शन पाने के लिए मैं आपके चरणों पर ही न्यौछावर हूँ ।'