गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
सबके चरण गहूँ मैं / अवनीश सिंह चौहान
8 bytes added
,
14:21, 11 मार्च 2012
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक छहरे
तोड़ सकूँ
चट्टान
चट्टानों
को भी
गड़ी हुई जो गहरे
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा नव-दल दूँ
हर विपदा में-
Abnish
273
edits