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22:35, 11 मार्च 2012 {{KKRachna
|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
}}
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<Poem>
मैं चाहें जितना उडूं वो उतार ही देगा
चलाके तीर मेरे दिल पे मार ही देगा
मेरे नसीब में ताउम्र शोहरतें ही नहीं
खुदा जो देगा बुलंदी उधार ही देगा
मैं खुद भी जीतने के ख्वाब मार बैठा हूँ
मैं जानता हूँ मुझे तू तो हार ही देगा
मुझे खुद अपने ही चेहरे पे ऐतबार नहीं
छुपाऊं लाख ग़मों को उभार ही देगा
मैं रिस्क लेके गले मिल लिया मुकद्दर से
बिगाड़ देगा मुझे या संवार ही देगा
'मनु' यकीन पे उसके न जा गुलसिताँ में
वो गुलपरस्त तुझे सिर्फ ख़ार ही देगा</poem>