948 bytes added,
22:38, 11 मार्च 2012 {{KKRachna
|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<Poem>
ख़्वाब में ये ही तिल्सिमात रहे
अपने हाथों में तेरे हाथ रहे
होके तुझसे जुदा न जी न पाए
खुश रहे जब भी तेरे साथ रहे
हम पे मोहरे चले इधर से उधर
हम तो शतरंज की बिसात रहे
हमने शोहरत तो खूब पायी मगर
हम न इन्सां न उसकी ज़ात रहे
कल का सूरज ज़रूर देखेंगे
हम अगर ज़िन्दा आज रात रहे
ऐ 'मनु' उससे गिला क्या करना
जिनके ईनाम भी खैरात रहे</poem>