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किससे क्या कहना है
सबके सब बहरे
 
राजा का दरबारी
विप्लव का अगुवा
डूबा है राजमहल
रंगो में गहरे
हड़ताले आन्देालन हड़तालें ,आन्दोलन
बेमतलब बातें,
सिक्केां सिक्कों पर तुली हुयी
सबकी औकातें
मंजिल तक जाने के
गलियारे सँकरे
 
भाषण उम्मीदों के
कागजी मसौदे,
मँहगे महँगी बाजारों में नें
खुले आम रौंदे,
सूरज के आँगन में
अँधियारे पसरे।
</poem>
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