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'''लड़ता रहा उमर भर मैं'''
लड़ता रहा उमर भर मैं
विपरीत हवाओं से
पर न हिले दृढ़ रहे इरादे
चाबुक दिखला जड़ने चाहे
ओठों पर ताले
अंगारों पर चला रात दिन
नंगे पाँवों से
काँटे चुभे डगर भर फिर भी
हार नहीं मानी
रोक न पाया मुझे समय का
धारदार पानी
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