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एक जलती-बुझती ख़ुशी / वीरेन डंगवाल
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11:38, 11 अप्रैल 2012
|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
जैसे तारों की टिमक
जैसे ब्याह वाला घर
जैसे फूट पड़ते फ़व्वारे का उल्लास
जैसे एक निराशा घनघोर
::मैं आजिज़ आ चुका हूँ इससे
::मुझे यह और चाहिए ।
</poem>
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