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एक जलती-बुझती ख़ुशी / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
जैसे तारों की टिमक
जैसे ब्याह वाला घर
जैसे फूट पड़ते फ़व्वारे का उल्लास
जैसे एक निराशा घनघोर
मैं आजिज़ आ चुका हूँ इससे
मुझे यह और चाहिए ।