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सूर स्याम उठि चले रोइ कै, जननी पूछति धाइ ॥<br><br>
सखा कहने लगे -`श्याम तो झगड़ालू हैं । अपने-आप ही तो जोशमें जोश में आकर दौड़ने खड़े होगयेहो गये; फिर अब तुम क्रोध क्यों कर रहे हो ? (इस बातकेबात के) बीचमें बीच में ही बलरामजी बलराम जी बोल पड़े-`इसके न तो मैया है और न पिता ही । यह हार-जीतको जीत को तनिक भी समझता नहीं, (व्यर्थ)बालकों को दोष देता है, स्वयं हारकर सखाओंसे हार कर सखाओं से झगड़ा करता है ।' यह कहकर (`घर जाओ!'यों कहकर) (उन्होंने कन्हैयाको कन्हैया को ) घर भेज दिया । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि अपने मनमें मन में रोष करके श्यामसुन्दर अब सखासे सखा से झगड़ रहे हैं ।'