सखा कहत हैं स्याम खिसाने / सूरदास
राग गौरी
सखा कहत हैं स्याम खिसाने ।
आपुहि-आपु बलकि भए ठाढ़े, अब तुम कहा रिसाने ?
बीचहिं बोलि उठे हलधर तब याके माइ न बाप ।
हारि-जीत कछु नैकु न समुझत, लरिकनि लावत पाप ॥
आपुन हारि सखनि सौं झगरत, यह कहि दियौ पठाइ ।
सूर स्याम उठि चले रोइ कै, जननी पूछति धाइ ॥
सखा कहने लगे -`श्याम तो झगड़ालू हैं । अपने-आप ही तो जोश में आकर दौड़ने खड़े हो गये; फिर अब तुम क्रोध क्यों कर रहे हो ? (इस बात के) बीच में ही बलराम जी बोल पड़े-`इसके न तो मैया है और न पिता ही । यह हार-जीत को तनिक भी समझता नहीं, (व्यर्थ)बालकों को दोष देता है, स्वयं हार कर सखाओं से झगड़ा करता है ।' यह कहकर (`घर जाओ!'यों कहकर) (उन्होंने कन्हैया को ) घर भेज दिया । सूरदास जी कहते हैं कि अपने मन में रोष करके श्यामसुन्दर अब सखा से झगड़ रहे हैं ।'