श्यामसुन्दर उस गोपिका के घर गये । (पहुँचते ही) देखा कि द्वारपर द्वार पर कोई नहीं है, तब इधर-उधर देखकर देख कर भीतर चल दिये । जब गोपीने श्यामको गोपी ने श्याम को आते देखा तो स्वयं छिप गयी । सूने घरमें मटकेके घर में मटके के पास मोहन चुप साधकर साध कर बैठ गये । मक्खन से भरा मटका देखते ही निकाल-निकालकर निकाल कर खाने लगे । पासके पास के मणिमय खंभेमें खंभे में अपने शरीरका शरीर का प्रतिबिम्ब देखकर (उसे बालक समझकर उसके साथ चतुराईसे चतुराई से बातें करने लगे `मैं आज पहली बारचोरी बार चोरी करने आया हूँ, तुम्हारा-मेरा साथ तो अच्छा हुआ ।' स्वयं खाते हैं और प्रतिबिम्बको प्रतिबिम्ब को खिलाते हैं । जब (मक्खन) गिरता है तो --`यह तुम्हारा क्या ढंग है? यदि चाहो तो तुम्हें पूरा मटका दे दूँ । मक्खन अत्यन्त मीठा है, इसे गिरा क्यों रहे हो? तुम्हें भाग देनेमें देने में तो मेरे मनमें मन में बड़ा सुख हुआ है । तुम अपने चित्तमें चित्त में क्या विचार करते हो ? श्यामसुन्दरके मुखकी श्यामसुन्दर के मुख की ये बातें सुन-सुनकर सुन कर गोपी जोरसे जोर से हँस पड़ी । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि गोपिका का मुख देखते ही मेरे स्वामी श्रीमुरारि भाग चले ।