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15:48, 24 मई 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=हवाओं के साज़ पर/ 'अना' क़ासमी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कजकुलाही<ref> गर्व से टोपी को सीधा धारण करना</ref> से, न मतलब रेशमी शालों से है
दोस्ताना यार मेरा सिर्फ़ मतवालों से है
शायरी का शौक़ तो ताज़ा है लेकिन दोस्तो
सिलसिला तो हुस्नवालों से मिरा सालों से है
उड़ के जायेगा भला वो जंगली पंछी कहाँ
जिसकी सिरयानों <ref>धमनी</ref> में खुशबू आम की डालों से है
परकटे पंछी चमन में रेंगते से देखकर
जाने क्यों इक ख़ौफ़ सा हरदम तिरे बालों से है
हम के तज दें ज़िन्दगी तक उस परी पैकर के नाम
फिर भी उसको बैर सा हम चाहने वालों से है
<poem>
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