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इंसान कहाँ (हाइकु) / जगदीश व्योम
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03:47, 4 जून 2012
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा ।
सहम गई
फुदकती गौरैया
शुभ नहीं ये।
</poem>
डा० जगदीश व्योम
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