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कुण्डलिया / गजेन्द्र ठाकुर
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'''कुण्डलिया'''
छत्ता घुरछा पल्लौसँ, भेल दिने अन्हार।
दिन बितलापर घर घुरी, काल भेल विकराल॥
Tripurari Kumar Sharma
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