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प्रदुषण / लालित्य ललित

61 bytes removed, 11:53, 23 अगस्त 2012
<Poem>
जी हजू़री !माई-बापआज आप की दुआ हैशुद्ध हवाभगवान आपको बनाए रखेकहां पायेंगे ?हज़ूर को, ऊपर वाला और देइस तरह के निवेदनहवा में तैरते हर दिशा पार्क मेंजायेंगेमिलेंगेनंगे पैर टहलेंगे तोहम सुनते भी हैं औरख़ैर नहीं आपके पैरों की अनसुना भी करते हैंवहां मिलेगीचौराहे पर बिकते हैंरात को खाली की गईगजरे, पत्रिकाएं, शाम के पेपरचार्ज़र, हैंडिल लॉक, पानी बीयर कीबोतलेंशनि महाराज से ले करअनगिनत पन्नियांगोद में उठाएनवजात शिशुओं कोले कर कम उम्र नमकीन की मुड़ी-तुड़ी - राजस्थानी माएंथैलियां, ढक्कनये दृश्य हर रोज़ अधजली सिगरेट के हैंटुकड़ेजो आप से आपका भला होध्यान चाहती हैं बिरजू कबाड़ी कामगर आम आदमी की सोचज़रा अलग हट कर जो मुंह अंधेरे निकलता हैवह देखता है बीड़ी सुलगाता हैसाईकिल पर बोरी बांधे‘ग्रीन लाइट’ पर चल देता कई-कई पार्क जाता हैऐ बाबू जी ! सुनो तो !सैर करने नहींमेम साहब के लिए बोतलें, पन्नियां, थैलियांगजरा ले जाओइकट्ठी करनेखुश हो जाएगी मैं पूछता हूं - अविवाहित ड्राइवरकभी-कभीलंबी सांस भरता हुआबिरजू सेमुस्काराता चल पड़ता बिरजू कितना कमा लेते हो ?- मालिक ख़र्चा निकल जाता हैसोचता और बिरजू अपने काम मेंलग जाता हैवो भीयह नौजवान बिरजूएक अगर किसी दिनइसी चौराहे सेसुबह पार्क ना जाएगजरा लेगातो गंदगी स्वागत करती - दिखेगीगाड़ी ने ऱफ्तार पकड़ ली बिरजू आने में पक्का हैमैं नंगे पांव नहीं घूमता ना जानेकब कौन-सा टुकड़ामेरा स्वागत कर बैठेथी ।
</Poem>
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