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15:11, 5 सितम्बर 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह= मेरे गीत तुम्हारा स्वर हो / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
एक अवलंब तुम्हीं, प्रभु ! मेरे
बाकी सभी मील के पत्थर, छूटें साँझ-सवेरे
मैंने निशि-दिन जड़ प्रवृतिवश
लिया क्षणिक सुख-भोगों में रस
अब सुध हुई, काल डोरे कस
लगा रहा जब फेरे
हे अव्यक्त, अनाम, अनिर्वच !
सोये भी तुम सृष्टि-नियम रच
पर यदि मेरी श्रद्धा हो सच
नींद रहे क्यों घेरे !
नभ की और टकटकी बाँधे
मैं बैठा हूँ पथ पर आधे
रहो मौनव्रत भी यदि साधे
पल तो रहो अँधेरे
एक अवलंब तुम्हीं, प्रभु ! मेरे
बाकी सभी मील के पत्थर, छूटें साँझ-सवेरे
<poem>