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पुलक / कविता वाचक्नवी
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23:23, 2 अक्टूबर 2012
वर्तनी सुधार
ज्यों नचती हों
स्वर्ग-सुघर की
कमिनियाँ
कामिनियाँ
::: कानन में।
टप-टप
टपती
टपतीं
टपक रहीं
::: बूँदें
ढका
मेघ ने
नभ को
पुरा
पूरा
,
दिनकर की
निष्प्रभ
Kvachaknavee
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