872 bytes added,
07:02, 7 अक्टूबर 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=‘शुजाअ’ खावर
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
उड़ा क्या जो रुख़ पर हवा के उड़ा
कि इससे तो अच्छा हूँ मैं बेउड़ा
किसी दिन अचानक क़रीब आ के तू
तसव्वुर में मेरे परखचे उड़ा
अभी तक नज़र मैं है मेरा वुजूद
तख़य्युल ज़रा और नीचे उड़ा
जिसे सब समझते थे बे-बालो-पर
वही इक परिंदा क़फ़स ले उड़ा
‘शुजा’ आँधियों कि करो फ़िक्र तुम
वो आयी सहर और मैं ये उड़ा
</poem>