898 bytes added,
14:58, 11 अक्टूबर 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
|
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
जटा जूट वारे, गल मुण्ड माल धारे, लिपटे सर्प कारे, जाके नंदिगण दुवारे हैं |
ऋषि मुनि संतन के, सदा शिव सहायक सत्य, गणपति से ज्ञानी और गिरिजा के प्यारे हैं |
दानी हैं दयाल हैं,दाता वे विधाता हैं,भक्तन की त्रिविधताप दुःख सकल टारे हैं |
कहता शिवदीनराम, राम नाम शिव-शिव रट,कछु नाहीं भेद वेद चार यूँ उचारे हैं |
<poem>