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राधा-सखी संवाद / सूरदास
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13:10, 9 अक्टूबर 2007
इहँई रहत कि और गाउँ कहूँ, मैं देखे नाहिं न कहू उनको ।
कहै नहीं समुझाइ बात यह मोहिं लगावति हौ तुम जिनकौं ॥
Pratishtha
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