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अपना अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहूँ / ग़ालिब
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10:15, 21 नवम्बर 2012
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Poem
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ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाले यार <ref>प्रिय से मिलन </ref>होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता
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Lalit Kumar
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