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06:56, 13 दिसम्बर 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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<poem>
हवा के साथ उड़ कर भी मिला क्या
किसी तिनके से आलम सर हुआ क्या
सबक बन पाई है इक भी सज़ा क्या
तो ऐसी मुंसिफ़ी का फ़ायदा क्या
ये अहसाँ है ज़मीं का आसमाँ पर
वगरना कोई क़तरा लौटता क्या
बदल सकते नहीं पल में अनासिर
हज़ारों साल मैं सोता रहा क्या
मेरे दिल में ठहरना चाहते हो
ज़रा फिर सेकहो – तुमने कहा क्या
डरा-धमका के बदलोगे ज़माना
अमाँ! तुमने धतूरा खा लिया क्या
उन्हें लगता है बाकी सब ग़लत हैं
वो खेमा साम्प्रदायिक हो गया क्या
अँधेरे यूँ ही तो घिरते नहीं हैं
उजालों ने किनारा कर लिया क्या
</poem>