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07:02, 13 दिसम्बर 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
तवील जंग में शामिल भी टूट सकते हैं
रसद रुकी तो मुजादिल<ref>युद्ध लड़ने वाले सिपाही</ref> भी टूट सकते हैं
मुसीबतों के फ़साने को दफ़्न रहने दो
कुरेदने से कई दिल भी टूट सकते हैं
घटाओ अब तो बरस जाओ तपते दरिया पर
तपिश बढ़ेगी तो साहिल भी टूट सकते हैं
तमाम खल्क़ में उलफ़त के सिलसिले फैलाओ
इसी मक़ाम पे क़ातिल भी टूट सकते हैं
अभी हयात का मतलब समझना बाकी है
घटा-बढ़ा के तो हासिल भी टूट सकते हैं</poem>
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