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01:09, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>‘झीनी-झीनी चदरिया,’
ओढ़ रखी है मैंने भी
तुम्हारे नाम की।
मेरी सांस-सांस
गाती है दिन-रात।
भीतर-बाहर आती-जाती
गुनगुनाती है हवा
बस एक ही आलाप....। </poem>