666 bytes added,
01:16, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>प्यासी थी तुम
बरसना था, बादल को
धीरे-धीरे,
वह बरस पड़ा
बरसरे-बरसते
आखिर फट गया।
ऐसे में
जो बना था
तुम्हारा सहारा
वह दया थी
नहीं था प्रेम तुम्हारा।
आंखें खोलो! देखो-
फिर से खुला है आकाश।</poem>