1,099 bytes added,
16:04, 24 जुलाई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
कोउ विधि मोहन का बन जाऊँ ।
मोहन मेरा मैं मोहन का, प्रेम से गुण नित गाऊँ ।
प्रेम नगर में उनके बस कर, उनसे दिल बहलाऊँ ।
प्रेम पंथ की गली -गली में, चलत चलत थक जाऊँ ।
मारग सरल बतादो आ कर, पग-पग पर घबराऊँ ।
उनके संग अंग सब राचूँ, निशदिन नेह बढ़ाऊँ ।
प्रकट दृष्टि में आवत नाहीं, कैसे करके पाऊँ ।
शिवदीन दया कर आजा मोहन, भव में मैं भरमाऊँ ।
नाव पुरानी भवसागर से , कैसे पार लगाऊँ ।
<poem>