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09:17, 15 अगस्त 2013 {{KKGlobal}}
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| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
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<poem>
मसायल हल न होंगे ख़ुदकुशी से
उलझना ही पड़ेगा ज़िंदगी से
मुझे उसकी गली पहुंचायेगी क्या
कोई पूछे मिरी आवारगी से
अगर तुम सामने आओ अचानक
तो हम पागल न हो जाएँ खुशी से
उसे पहचानना बेहद है मुश्किल
वो सबसे मिल रहा है सादगी से
तिरे रस्ते में सहरा ने बताया
बुझाओ प्यास अपनी तश्नगी से
</poem>