भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मसायल हल न होंगे ख़ुदकुशी से / इरशाद खान सिकंदर
Kavita Kosh से
मसायल हल न होंगे ख़ुदकुशी से
उलझना ही पड़ेगा ज़िंदगी से
मुझे उसकी गली पहुंचायेगी क्या
कोई पूछे मिरी आवारगी से
अगर तुम सामने आओ अचानक
तो हम पागल न हो जाएँ खुशी से
उसे पहचानना बेहद है मुश्किल
वो सबसे मिल रहा है सादगी से
तिरे रस्ते में सहरा ने बताया
बुझाओ प्यास अपनी तश्नगी से