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09:51, 19 अगस्त 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार='वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
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<poem>
पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
यानी ना-पाएदार हैं हम
ख़ाक-ए-सर-ए-रह-गुज़ार हैं हम
पामाल-ए-जफ़ा-ए-यार हैं हम
नौमीदी ओ यास चार सू है
उफ़ किस के उम्मीदवार हैं हम
किस दुश्मन-ए-जाँ की आरज़ू है
जो मौत के ख़्वास्त-गार हैं हम
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़सोस
तेरे ही तो जाँ-निसार हैं हम
‘वहशत’ ख़ामोश जल रहे हैं
गोया शम-ए-मज़ार हैं हम
</poem>
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