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18:49, 3 नवम्बर 2007 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह=
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इतनी हसीन इतनी जवाँ रात, क्या करें
जागे हैं कुछ अजीब से जज़्बात, क्या करें ?
पेड़ों के बाजुओं में महकती है चांदनी
बेचैन हो रहे हैं ख़्यालात, क्या करें ?
साँसों में घुल रही है किसी साँस की महक
दामन को छू रहा है कोई हाथ, क्या करें ?
शायद तुम्हारे आने से यह भेद खुल सके
हैराँ हैं कि आज नई बात क्या करें ?