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|संग्रह=घर तौ एक नाम है भरोसै रौ / अर्जुनदेव चारण
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<Poem>
 
सपनां रौ भार
किणनै ई भारी नीं लागै
कांई ठा
कठै गम जावै
 
</Poem>
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