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दूहा / जोगेश्वर गर्ग

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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita‎}}<poem>सावण आयो सायबा, दूर देश मत जाय !तन भीज्यो बरसात में, मन में लागी लाय !!सावण घणो सुहावणो, हरियो भरियो रूप !निरखूं म्हारो सायबो, सावण घणो कुरूप !!साजन उभा सामने, निरखे धण रो रूप !बादलियाँ रे बीच में, मधुरी मधुरी धूप !!</poem>
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