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दूहा / जोगेश्वर गर्ग
Kavita Kosh से
सावण आयो सायबा, दूर देश मत जाय!
तन भीज्यो बरसात में, मन में लागी लाय!!
सावण घणो सुहावणो, हरियो भरियो रूप!
निरखूं म्हारो सायबो, सावण घणो कुरूप!!
साजन उभा सामने, निरखे धण रो रूप!
बादलियाँ रे बीच में, मधुरी मधुरी धूप!!