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आज / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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<Poempoem
डर भूत सूं
का पछै भूत हुवणै सूं
अबै हांसणो का रोवणो
आपरै सारू है।
 </Poempoem>
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